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क॒दा ग॑च्छाथ मरुत इ॒त्था विप्रं॒ हव॑मानम् । मा॒र्डी॒केभि॒र्नाध॑मानम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kadā gacchātha maruta itthā vipraṁ havamānam | mārḍīkebhir nādhamānam ||

पद पाठ

क॒दा । ग॒च्छा॒थ॒ । म॒रु॒तः॒ । इ॒त्था । विप्र॑म् । हव॑मानम् । मा॒र्डी॒केभिः॑ । नाध॑मानम् ॥ ८.७.३०

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:7» मन्त्र:30 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:30


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शिव शंकर शर्मा

प्राणों की चञ्चलता दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुतः) हे प्राणसहित इन्द्रियो ! (कदा) कब (हवमानम्) परमदेव को निमन्त्रित करते हुए और (मार्डीकेभिः) सुखकर स्तोत्रों से (नाधमानम्) प्रार्थना में लगे हुए (विप्रम्) मेधावी योगी को आप प्राप्त होंगे ॥३०॥
भावार्थभाषाः - जब उपासक समाधिकाल में ईश्वर की प्रार्थना करने लगे, तब प्रथम इन्द्रियों को सर्वथा वश में कर लेवे, क्योंकि जब इन्द्रियगण इधर-उधर भाग जाते हैं, तब उनको पुनः विवश करना अति कठिन हो जाता है ॥३०॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुतः) हे योधाओ ! (इत्था) इस प्रकार (हवमानम्) बुलाते हुए (नाधमानम्) आपके आगमन की याचना करते हुए (विप्रम्) मेधावी पुरुष के यहाँ (मार्डीकेभिः) सुखसाधन पदार्थों सहित आप (कदा, गच्छाथ) कब जाते हैं ॥३०॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में नाना प्रकार की विद्याओं को जाननेवाले मरुत्=विद्वान् योद्धाओं के आगमन की प्रतीक्षा का वर्णन किया गया है कि हे मरुद्गण ! आप सुखसामग्री सहित कब जाते हैं अर्थात् शीघ्र जाएँ ॥३०॥
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शिव शंकर शर्मा

प्राणचञ्चलत्वं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मरुतः प्राणाः=इन्द्रियसमेताः प्राणाः। कदा=कस्मिन् काले। हवमानम्=परमदेवं निमन्त्रयन्तम्। मार्डीकेभिः= सुखकरैः स्तोत्रैः। नाधमानम्=याचमानम्=प्रार्थयमानम्। विप्रम्=मेधाविनं योगिनम्। गच्छाथ=गच्छथ ॥३०॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुतः) हे योद्धारः ! (इत्था) इत्थम् (हवमानम्) आह्वयन्तम् (विप्रम्) मेधाविनम् (नाधमानम्) त्वदागमनं याचमानम् (मार्डीकेभिः) सुखसाधनपदार्थैः सह (कदा, गच्छाथ) कदा गच्छसि ॥३०॥